मुक्तक
🌻🌻🌻
#पिता
मेरी बेटी दुल्हन बनकर तू जब ससुराल जाएगी
नए माहौल में ख़ुद को तू कैसे ढाल पाएगी
वहाँ पति के अलावा और भी कुछ फ़र्ज़ हैं तेरे
वो ज़िम्मेदारियाँ कैसे अकेले तू उठाएगी
#बेटी
सदा मन कर्म वचनों से करूँ ससुराल में सेवा
सदा दोनों कुलों का मान ये बेटी बढ़ाएगी
चलूँ सावित्री लक्ष्मी के ही पद चिह्न पर बाबुल
यही आशीष दो बेटी हमेशा मुस्कुराएगी
नहीं चिंता करो पापा तुम्हारी लाडली है जो
क़दम अपने कठिन मग से नहीं हरगिज़ हटाएगी
प्रीतम श्रावस्तवी