मुक्तक
दुर्लभ तो कुछ भी नहीं, गर मन हो विश्वास ।
पतझड़ जैसी जिंदगी, बन जाए मधुमास ।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम –
मरु मन में हलचल करे, सावन जैसी प्यास ।
सुशील सरना / 26-12-23
दुर्लभ तो कुछ भी नहीं, गर मन हो विश्वास ।
पतझड़ जैसी जिंदगी, बन जाए मधुमास ।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम –
मरु मन में हलचल करे, सावन जैसी प्यास ।
सुशील सरना / 26-12-23