मुक्तक
टूटकर, सब बिखर जाते हैं।
टूटकर , वह निखर जाते हैं।
जो चोट सहकर,बिन सहारे;
टूटकर भी सदा मुस्कुराते हैं।
___________________
स्वरचित सह मौलिक
✍️पंकज कर्ण
टूटकर, सब बिखर जाते हैं।
टूटकर , वह निखर जाते हैं।
जो चोट सहकर,बिन सहारे;
टूटकर भी सदा मुस्कुराते हैं।
___________________
स्वरचित सह मौलिक
✍️पंकज कर्ण