मुक्तक
प्रतिज्ञा का समापन कर, सियापति राम घर आये।
मिटाकर पाप धरती से, खलों का नाश कर आये ।।
लखन,हनुमान, अंगद, रीछपति आरूढ़ थे रथ पर।
गगन में देखकर पुष्पक, भरत के नैन भर आये ।।
प्रतिज्ञा का समापन कर, सियापति राम घर आये।
मिटाकर पाप धरती से, खलों का नाश कर आये ।।
लखन,हनुमान, अंगद, रीछपति आरूढ़ थे रथ पर।
गगन में देखकर पुष्पक, भरत के नैन भर आये ।।