मुक्तक 4
500-551
551
कितना प्यारा सपनों के जैसा ये घर है
ठीक सामने झर झर झरती हुई नहर है
ऊँचे पर्वत और खिली है ये हरियाली
लगता स्वर्ग उतर आया इस धरती पर है
550
प्यार की दुनिया नहीं फिर से बसा पायेंगे हम
और आँखों को नहीं अपनी रुला पाएंगे हम
ज़िन्दगी तूने सताया है दिखाकर ख्वाब बस
टूटने से अब नहीं खुद को बचा पायेंगे हम
549
जिंदगी खुद में उलझती जा रही है
जैसे तैसे बस गुजरती जा रही है
मन उड़ाने भर रहा पर इतनी ऊंची
डोर हाथों से फिसलती जा रही है
548
गौर दिल पर भी कुछ कीजिए
बात इसकी भी सुन लीजिए
जख्म मत कीजिए अब हरे
सूखने की दवा दीजिए
547
तन्हाइयों ने दिल में बनाया मकान है
खामोशियों तो पहले से ही बेजुबान है
आँखों के रास्ते हुये नीलाम अश्क हैं
आहों की दिल में लग रही जैसे दुकान है
546
ऐ ज़िन्दगी माना तू बड़ी बेमिसाल है
पर जीना भी तुझे तो क्या कुछ कम कमाल है
मिलता है बस वही जो लकीरों में है लिखा
हाथों में बिछाया हुआ कैसा ये जाल है
545
ये माना मंज़िलें पानी बहुत जरूरी है
बड़ी भी सोच बनानी बहुत जरूरी है
निकल न जाये मगर हाथों से ही ये अपने
लगाम मन पे लगानी बहुत जरूरी है
544
किसी का प्यार हो तुम ये कभी भी भूल मत जाना ।
किसी का प्यार हैं हम भी नहीं मुमकिन ये झुठलाना।
बसेगी फिर यहाँ कैसे किसी के प्यार की बस्ती
नहीं आसान होता है जमाने से भी टकराना
उलझती जा रही उलझन जरूरी है ये सुलझाना।
543
542
541
उनकी नज़र के तीर तो दिल में उतर गये
यूँ लग रहा है पाँव में लग जैसे पर गये
हर सांस में बसे वो हमारी यूँ ‘अर्चना’
पाया उन्हें ही साथ में फिर हम जिधर गये
540
539
लौट कर आते नहीं दुनिया से जाने वाले हैं
क्या पता कब कौन से गम हम पे आने वाले हैं
सोच कर चलना हमेशा प्यार की हर राह पर
तोड देते दिल यहाँ दिल में बसाने वाले हैं
538
बड़ी पैनी तुम्हारी बातों की है धार ऐ हमदम
इसी ने ही तराशा है बने पत्थर के बुत जो हम
अकेला कर दिया हमको मगर टूटे नहीं फिर भी
मिला है साथ हमको आँसुओं का भी नहीं कुछ कम
537
थे हम मजबूर भी इतने मना करना पड़ा हमको
पलक में थे भरे आँसू मगर हँसना पड़ा हमको
मुहब्बत चार दिन की थी मगर गम ज़िन्दगी भर का
सितम ये वक़्त के सहकर यहाँ रहना पड़ा हमको
536
हमारे सामने जो इतना मुस्कुराते हो
बताओ कौन सा गम है जिसे छिपाते हो
समझते क्यों नहीं इस बात को हमारी तुम
पराया यूँ बना कितना हमें रुलाते हो
535
कभी भी न तुमको भुला पाएंगे हम
नहीं खोल दिल भी दिखा पाएंगे हम
समझ लेना मजबूरियाँ तुम हमारी
लबों से न कुछ भी बता पाएंगे हम
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबादडॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
534
था हमें संकोच उनसे कुछ भी कह पाये नहीं
वो गये ऐसे कभी फिर लौट कर आये नहीं
काश पढ़ पाते वो चेहरे की लिखावट को कभी
बात सारी थी लिखी जो लब पे हम लाये नहीं
533
न चाहते हुये भी दिल दुखा दिया हमने
तड़पता दिल है हमारा ये क्या किया हमने
उन्होंने प्यार के उपहार से नवाजा था
मगर जमाने के डर से नहीं लिया हमने
532
06-08-2020
हमें तो बातों से अपनी लुभा गया कोई
कि शोर धड़कनों में भी मचा गया कोई
थे हम तो नींद के आगोश में न जाने कब
हमारी आंखों में सपने सजा गया कोई
सुमन की खिली एक बगिया से थे हम
तुम्हारी खुशी का भी जरिया से थे हम
किया वक़्त ने कुछ उलटफेर ऐसा
समंदर हुये पहले नदिया से थे हम
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
531
इश्क की खुशबू से दिल महकता ही है
मस्त दीवाना हो कर बहकता भी है
ये मिलावट नहीं इसकी फितरत यही
साज बन धड़कनों में धड़कता भी है
इत्र सा इश्क दिल में महकता भी है
इसमें दिल मय पिये बिन बहकता भी है
मीठा मीठा सा ये दर्द दे जाता है
जाम आंखों से भरा छलकता भी है
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
530
भोर कुछ करने का ले पैगाम आई है
शाम लेकर थोड़ा सा आराम आई है
रात के हैं पास सपने ज़िन्दगी के
नींद का लेकर तभी आयाम आई है
529
अब यकीन करना तुम पे नहीं हो पायेगा
ख्वाब एक होने का रह अधूरा जायेगा
हमने’ तो ये’ सपने में भी कभी नहीं सोच
प्यार ये तुम्हारा ही दिन ये ले के आएगा
दो मुक्तक
528
न रहता एक सा मौसम नहीं है
मिली खुशियाँ भी तो कुछ कम नहीं है
दिखाती आईना भी ज़िन्दगी ये
है ऐसा कौन जिसको गम नहीं है
527
किसी की याद में वो बह रही है
उदासी है मगर चेहरा वही है
किसी से कह नहीं सकती यहाँ कुछ
तभी ये बात दर्पण से कही है
26-08-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
24-08-2020
526
तोड़ कर सारे बंधन गया कौन था
सोचना तुम कि तन्हा हुआ कौन था
जान पहचान तो थी तुम्हारी बहुत
दोस्त मेरा तुम्हारे सिवा कौन था
525
लफ्ज़ मीठे स्वाद पर कड़वा लगा
मुस्कुराहट का भी रँग फीका लगा
पाठ अनुभव ने पढ़ाया जब हमें
हर नज़ारा आंखों को बदला लगा
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
524
19-08-2020
बह रहा है खारे पानी का समंदर,
बात दिल की आँसुओं से हो रही है।।
नींद भी आगोश में लेती नहीं अब,
जग रहे हम सारी दुनिया सो रही है।।
ज़ख्म भी नासूर दिल के हो गए यूँ,मिल रही कोई दवा तक ही नहीं अब।
ज़िन्दगी में पर बहारें फिर खिलेंगी ,आस आकर बीज मन में बो रही है ।
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
523
मिल थपेड़ों का गया हमको सहारा
डूबकर भी मिल गया देखो किनारा
धोखे भी देखो बुरे होते नहीं हैं
दे सबक हमको भला करते हमारा
19-08-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
18-08-2020
522
अश्क मोती बहें आज तक
हम अकेले रहें आज तक
तुम क्या भूले हमें प्यार कर
हम जुदाई सहें आज तक
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
521
दिल की तुम भी सुनो दिल की हम भी सुने
ज़िन्दगी के सुरीले सुरों को चुने
बीच में हम किसी को भी आने न दें
आंखों में ख्वाब इक दूसरे के बुने
520
ख्वाब तोड़े जो तुमने वो जुड़ न सके
प्यार के फिर गगन में भी उड़ न सके
बात ने हर तुम्हारी यूँ घायल किया
पग तुम्हारी तरफ फिर तो मुड़ न सके
519
प्यार की राह पर हमको चलना न था
गर चले भी तो ऐसे बिखरना न था
जब मुकर अपने ही वादों से वो गये
फिर कभी भी कोई हल निकलना न था
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
518
होती है मासूमियत,बच्चों की पहचान
गुब्बारे जैसे भरें, मन के स्वप्न उड़ान
हाथों में उनको पकड़,आंखें करके बन्द
छू लेना इनको गगन, लगता है आसान
11-07-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
517
29-06-2020
हाथों में सूरज भी थामे रहती है
और उड़ाने ऊँची भी ये भरती है
कभी सख्त हो जाती पर्वत सी नारी
कभी सरल निर्मल नदिया सी बहती है
516
28-06-2020
जन्मदिवस पर कामना, जियें हज़ारों साल
खुशियों की वर्षा रहे, गम का पड़े अकाल
हो सारे संसार में, नाम और यशगान
लिखीं आपकी पुस्तकें, ऐसा करें धमाल
515
23-06-2020
चाइनीज सामान का, नहीं करो उपयोग
भेजा धोखेबाज ने, कोरोना का रोग
मुँह पर लगा नकाब लो, बार बार धो हाथ
मिलना जुलना छोड़ कर, करो घरों में योग
514
जख्म को जख्म से पड़े सीना।
हँसते हँसते गरल पड़े पीना।
धोखे मिलते कदम कदम पे यहाँ,
है न आसान ज़िन्दगी जीना।
06-06-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
01-06-2020
513
लोग कुछ तो अजीब होते हैं
कुछ के बिगड़े नसीब होते हैं
क्या अमीरों की बात करिएगा
कितने दिल के गरीब होते हैं
512
शेर सुनकर वो वाह कर बैठे
कुछ तड़प कर के आह कर बैठे
दर्द से थी भरी ग़ज़ल इतनी
आँसू नीलाम शाह कर बैठे
511
प्यार सस्ता है क्या खरीदेंगे
मान महंगा है क्या खरीदेंगे
दुनिया विज्ञापनों की है भाई
माल बिकता है क्या खरीदेंगे
510
भावनात्मक दर्द बड़ा, करता है विस्फोट
बहता है ये आँख से,जब जब लगती चोट
मगर समझ पाते इसे,जो संवेदनशील
कहने वाले में दिखे, वरना सबको खोट
509
हो जाते फलदार पेड़ तो खुद ही वो झुक जाते हैं
खिलकर सुंदर पुष्प धरा ये खुशबू से महकाते हैं
ऐसे ही ऊपर उठ कर अभिमान नहीं मानव करना
ये जीवन कैसे जीना ये हमको पाठ पढ़ाते हैं
हैं
508
दिल में रख छवि श्याम की मीरा दीवानी हो गई
दिल में बस के श्याम के ही राधा रानी हो गई
बाँध घुँघरू पाँव में नाचने मीरा लगी
राधा के तो प्रेम की अमृत कहानी हो गई
507
देखिये कितनी सुहानी शाम आई है
ज़िन्दगी में खुशियों का पैगाम लाई है
नाम उनका जगमगाया है सितारों ने
चाँद ने भी चाँदनी अपनी बिछाई है
506
वो सपना अब हुआ पूरा जिसे देखा था बरसों से
खुशी से बह रहे हैं देखिये अब अश्क आँखों से
ये कविताएं नहीं हैं धड़कनें हैं मेरे भावों की
इन्हें संतान के जैसे है पाला अपने हाथों से
505
ज़िन्दगी चलती नहीं है मौत से डरकर
स्वर्ण भी तो है दमकता आग में जलकर
मुश्किलों का सामना कर हौसलों से
है नहीं दुश्मन कोई भी खौफ से बढ़कर
504
लब थे खामोश मगर बोलती रही आँखें
मुस्कुराहट रहीं पर भीगती रहीं आँखें
पलकें उठती रहीं झुकती रहीं
प्यार कितना है हमें तोलती रही आँखें
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
503
है’ पसरा लोकडाउन में तो सन्नाटा ही सन्नाटा
नहीं मिलते गले लगकर करें सब दूर से टाटा
ये कोरोना है आया मौत का व्यापार करने को
हुआ है ज़िन्दगी को देखिए इसमें बड़ा घाटा
502
खुलेगा लोकडाउन तो लगेगा सबको नज़राना
शुरू हो जाएगा फिर से कहीं भी आना या जाना
लगाये घात बैठा है ये कोरोना भी तो बाहर
न नासमझी में उसको साथ अपने घर में ले आना
501
नहीं ये लोकडाउन तो हमेशा की कहानी है
हमें अब ज़िन्दगी कोरोना के सँग सँग बितानी है
सँभल कर हर कदम बाहर हमें रखना मगर होगा
हमारे हाथों में ही अब हमारी जिंदगानी है