मुक्तक
रोज बिक रहे हैं सामान की तरह .।
कर रहे बर्ताव हैवान की तरह ।
आखों में स्वार्थ के सिवा कुछ नहीं ,
रोज खुल बंद हो रहे दुकान की तरह .।।
रोज बिक रहे हैं सामान की तरह .।
कर रहे बर्ताव हैवान की तरह ।
आखों में स्वार्थ के सिवा कुछ नहीं ,
रोज खुल बंद हो रहे दुकान की तरह .।।