मुक्तक
हो चुकी है भोर अब सूरज निकलना चाहिए
मच चुकी है बहुत बमचक शोर थमना चाहिए
क्यों खड़े हो काटने को शीश अपने भाई का ही
लहू सबका एक ही है भान होना चाहिए ,,,,,
हो चुकी है भोर अब सूरज निकलना चाहिए
मच चुकी है बहुत बमचक शोर थमना चाहिए
क्यों खड़े हो काटने को शीश अपने भाई का ही
लहू सबका एक ही है भान होना चाहिए ,,,,,