मुक्तक
हरिद्वार जाकर गंगा में ,तन को अपने धो लेते।
कष्ट दूर हो जाते सारे ,नींद चैन की सो लेते।
हँसना अपनी मजबूरी है ,गैरों के सँग रहते हैं,
अपनों का कंधा मिलता तो,हम भी खुलकर रो लेते।
डाॅ बिपिन पाण्डेय
हरिद्वार जाकर गंगा में ,तन को अपने धो लेते।
कष्ट दूर हो जाते सारे ,नींद चैन की सो लेते।
हँसना अपनी मजबूरी है ,गैरों के सँग रहते हैं,
अपनों का कंधा मिलता तो,हम भी खुलकर रो लेते।
डाॅ बिपिन पाण्डेय