मुक्तक
फील बैड हुआ फील गुड राष्ट्रवादियों को
सत्ता सुख छूट गया दुखित बिचारे है।
दाग दार खुद हैं प्रमाणित किया तहलका ने
दाग दार मुद्दा फिर भी संसद में उठाते हैं
अटल की बैसाखी पर राजसुख का पान किया
उन पर ये व्यंग वाण मिल कर चलाते हैं।
धर्म के ये ठेकेदार तनिक न आयी लाज
राष्ट्र धर्म भूल गये खुद को लजाते हैं।
भाषा जाति धर्म की बंधी न कोई सीमा यहाँ,
एकता के साथ में अनेकता का देश है।
पंडित, ग्रंथी पारसी पाते सब मान यहाँ,
राम रहमान का निराला मेरा देश है।
विश्व मानता जिसे है आदि से यों धर्म गुरू,
साधुओं फकीरों का प्यारा मेरा देश है।
घोलते जहर जो धरा महकती वाटिका में,
ऐसे दुष्ट पापियों का काल मेरा देश है।
लोकतंत्र देश की अमानत है मान दो,
दुष्ट दुर्बुद्धि से न उसको मिटाइये।
न्याय बलिदान से कटी है बेड़ी दासता की,
स्वार्थ धर्मान्धता के तीर न चलाइये।
सुध . बुध भूल गये सत्ता ने किनारा किया,
वर्ग संघर्ष को न और पनपाइये।
जातिगत कठोरता की फांसीवादी शक्तियों के,
विष दंत तोड़ मातृभूमि को बचाइये।