मुक्तक
तुम नहीं तो मुझे बस्तियाँ खल रहीं।
प्रेम की वे सभी चिट्ठीयाँ खल रहीं।
जबसे गयी हो मुझे यार तुम छोड़कर,
दूरियाँ सिसकियाँ हिचकियाँ खल रहीं।
-अभिनव अदम्य
तुम नहीं तो मुझे बस्तियाँ खल रहीं।
प्रेम की वे सभी चिट्ठीयाँ खल रहीं।
जबसे गयी हो मुझे यार तुम छोड़कर,
दूरियाँ सिसकियाँ हिचकियाँ खल रहीं।
-अभिनव अदम्य