मुक्तक
मायने खुबसूरती के बदलने लगें हैं
खोंटे सिक्के भी अब चलने लगें हैं ।
-अजय प्रसाद
पछता रहे हैं पाँव सफ़र के बाद
याद आ रहें हैं गाँव शहर के बाद।
काट कर दरख्तों को बनाए रास्ते
ढूंढ रहे हैं हम छाँव शज़र के बाद।
-अजय प्रसाद
बहस,विवाद,औ विरोध का तरीका बदल गया
इन्सान और इंसानियत का लहज़ा बदल गया ।
मसले मुल्क के महफ़ूज़ रहतें हैं रहनुमाओं से
आजकल तो रहनूमाई का सलीका बदल गया ।
-अजय प्रसाद