मुक्तक
रिक्त गगरिया
प्रेमिल पुष्प खिले हर उपवन,बगिया सारी सरस गयी है।
इस आँगन को छोड़ बदरिया,पात-पात पर बरस गयी है।
गरजें घिर-घिर आते वारिद,पूरे जग की प्यास बुझाते,
मेरे मन की रिक्त गगरिया,दो बूँदों को तरस गयी है।।
Urvashi Karanwal ??
रिक्त गगरिया
प्रेमिल पुष्प खिले हर उपवन,बगिया सारी सरस गयी है।
इस आँगन को छोड़ बदरिया,पात-पात पर बरस गयी है।
गरजें घिर-घिर आते वारिद,पूरे जग की प्यास बुझाते,
मेरे मन की रिक्त गगरिया,दो बूँदों को तरस गयी है।।
Urvashi Karanwal ??