मुक्तक
मुक्तक
मुक्तक एक ऐसी काव्य विधा है जो आजकल सर्वाधिक लोकप्रिय है, कवि सम्मलेन का मंच हो या कविगोष्ठी या फिर फेसबुक का विस्तृत संसार, मुक्तक का वर्चस्व सर्वत्र देखा जा सकता है। थोड़े में अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय देना हो , किसी लम्बे काव्य पाठ की भूमिका बनानी हो या श्रोताओं के बंधे हुए हाथ तालियों के लिए खोलने हों तो सबसे अचूक विधा है मुक्तक। यहाँ तक कि प्रबन्ध काव्यों में भी मुक्तकों का प्रयोग प्रभावशाली रूप में होता है। आइए देखते हैं ऐसी चमत्कारी काव्य विधा मुक्तक का मर्म क्या है।
मुक्तक क्या है
मुक्तक एक सामान लय वाली चार पंक्तियों की रचना है जिसकी पहली , दूसरी और चौथी पंक्ति तुकान्त तथा तीसरी पंक्ति अनिवार्यतः अतुकान्त होती है और जिसकी अभिव्यक्ति का केंद्र अंतिम पंक्ति में होता है।
मुक्तक के लक्षण
1. इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं जिनकी लय एक समान होती है। यह लय किसी भी मापनीयुक्त या मापनीमुक्त छन्द पर आधारित हो सकती है, जिसे मुक्तक का आधार छन्द कहते हैं।
2. पहली, दूसरी और चौथी पंक्तियाँ तुकान्त होती हैं जबकि तीसरी पंक्ति अनिवार्यतः अतुकान्त होती है।
3. अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार होती है कि उसका केंद्र विन्दु अंतिम पंक्ति में रहता है और अंतिम पंक्ति में ही कथ्य का विस्फोट होता है।
4. यदि मुक्तक की शाब्दिक बुनावट को देखा जाये तो गीतिका (या ग़ज़ल) का मुखड़ा और एक युग्म मिलाने से मुक्तक बन जाता है किन्तु यह पूरा सच नहीं है क्योंकि गीतिका के मुखड़े और युग्म का विषय स्वतंत्र या निरपेक्ष होता है जबकि मुक्तक की चारों पंक्तियाँ एक ही विषय को प्रतिपादित करती हैं।
5. मुक्तक की कहन कुछ-कुछ गीतिका (या ग़ज़ल) के युग्म जैसी होती है, इसे वक्रोक्ति, व्यंग्य या अंदाज़-ए-बयाँ के रूप में देख सकते हैं लेकिन गीतिका में जो बात दो पंक्तियों में पूरी होती है वही बात मुक्तक में चार पंक्तियों में पूरी होती है। वस्तुतः मुक्तक की पहली तीन पंक्तियों में लक्ष्य पर ‘संधान’ किया जाता है और अंतिम पंक्ति में प्रहार किया जाता है, यह प्रहार एक विस्फोट की भांति चमत्कारी होता है। जैसे विस्फोट की ध्वनि के प्रभाव से व्यक्ति के मुख से कुछ अचानक प्रस्फुटित हो जाता है वैसे ही चौथी पंक्ति के प्रभाव से श्रोता के मुख से अनायास ही ‘वाह’ निकल जाता है।
6. मुक्तक वस्तुतः प्रकारांतर से छन्द ही होता है। यदि चार चरणों वाले सम मात्रिक या सम वर्णिक छन्द के पहले, दूसरे और चौथे चरणों को तुकान्त तथा तीसरे चरण को अतुकान्त कर दिया जाये तो वह मुक्तक हो जाता है। इस प्रकार मुक्तक और छन्द में अंतर केवल तुकान्त-विधान का है।
उदाहरण :
रोज़ियाँ चाहिए कुछ घरों के लिए,
रोटियाँ चाहिए कुछ करों के लिए।
काम हैं और भी ज़िंदगी में बहुत –
मत बहाओ रुधिर पत्थरों के लिए।
विन्दुवत व्याख्या
1. उपर्युक्त चारों पंक्तियाँ एक ही लय में निबद्ध हैं। यह लय वास्रग्विणी छंद पर आधारित है। यह छंद मापनीयुक्त है। मुक्तक की पंक्तियाँ छन्द की मापनी का किस प्रकार पालन करती हैं, इसे निम्न प्रकार देखा जा सकता है-
रोज़ियाँ/ चाहिए/ कुछ घरों/ के लिए,
गालगा/ गालगा/ गालगा/ गालगा
रोटियाँ/ चाहिए/ कुछ करों/ के लिएl
गालगा/ गालगा/ गालगा/ गालगा
काम हैं/ और भी/ ज़िंदगी/ में बहुत –
गालगा/ गालगा/ गालगा/ गालगा
मत बहा/ओ रुधिर/ पत्थरों/ के लिएl
गालगा/ गालगा/ गालगा/ गालगा
लय की समानता को गा कर भी देखा जा सकता है।
2. इस मुक्तक पहली, दूसरी और चौथी पंक्तियों का तुकांत है – ‘अरों के लिए’ जिसे निम्नप्रकार निर्धारित किया जा सकता है –
घरों के लिए = घ् + अरों के लिए
करों के लिए = क् + अरों के लिए
थरों के लिए = थ् + अरों के लिए
इस तुकान्त ‘अरों के लिए’ में ‘अरों’ समान्त है जबकि ‘के लिए’ पदान्त है।
3. इस मुक्तक की पहली दो पंक्तियों में मूल कथ्य की भूमिका रची गयी है , तीसरी पंक्ति से मुख्य कथ्य का प्रारंभ होता है और वह चौथी पंक्ति में जाकर पूर्ण होता है।
4. इसकी शाब्दिक बुनावट को देखें तो पहली दो पंक्तियाँ गीतिका के मुखड़े जैसी लगती है और अंतिम दो पंक्तियाँ उसी गीतिका के युग्म जैसी लगती हैं।
5. इसकी कहन की विशिष्टता को सहज ही देखा और परखा जा सकता है।
मुक्तक के दूसरे अर्थ
‘मुक्तक’ शब्द आज के साहित्यिक परिवेश में उसी अर्थ में प्रयोग होता है जिसकी चर्चा ऊपर की गयी है किन्तु कदाचित इसका प्रयोग निम्न रूपों में भी होता है –
(1) पारंपरिक काव्य शास्त्र में काव्य को दो वर्गों में विभाजित किया गया है – प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य। प्रबंध काव्य के अतर्गत दो वर्ग आते हैं– महा काव्य और खंड काव्य। इन दोनों के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के काव्य ‘मुक्तक काव्य’ के अंतर्गत आते हैं।
(2) भारतीय सनातनी छंदों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है – मात्रिक और वर्णिक। इनमे से वर्णिक छंद भी दो प्रकार के हैं– एक ‘गणात्मक’ जिनमें प्रत्येक चरण के सभी वर्णों का मात्राभार सुनिश्चित होता है और दूसरे ‘मुक्तक’ जिनमें प्रत्येक चरण के वर्णों की संख्या तो सुनिश्चित होती है किन्तु वर्णों का मात्राभार अनिश्चित या स्वैच्छिक होता है।
मुक्तक कैसे रचें
सबसे पहले किसी मनपसंद गीतिका या छन्द को गाकर और गुनगुनाकर उसकी लय को मन में बसायें। उसी लय पर शब्दों ढालते हुए अपने मन के भाव व्यक्त करें। अपनी बात मुक्तक के तानेबाने में इस प्रकार कहें कि कथ्य का विस्फोट चौथी पंक्ति में ऐसे चमत्कार के साथ हो कि सुनने वाला ‘वाह’ करने पर विवश हो जाये। जब मुक्तक बन जाये तब एक बार उसकी छन्दबद्धता और तुकांत विधान को अवश्य जाँच लें और यदि कोई कमी दिखे तो उसे सुधार लें। यदि आप में काव्य प्रतिभा है तो मुक्तक अवश्य बनेगा और बहुत सुन्दर बनेगा।
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संदर्भ ग्रंथ – ‘छन्द विज्ञान’, लेखक- ओम नीरव, पृष्ठ- 360, मूल्य- 400 रुपये, संपर्क- 8299034545