मुक्तक
सच है अब तादाद बहुत गद्दारों की
घुसपैठी,दंगाइयों और मक्कारों की,
मज़हब की आड़ में छिपके बैठें जो
है आतंकी पैदाइश उन्हीं हज़ारों की,,
सच है अब तादाद बहुत गद्दारों की
घुसपैठी,दंगाइयों और मक्कारों की,
मज़हब की आड़ में छिपके बैठें जो
है आतंकी पैदाइश उन्हीं हज़ारों की,,