मुक्तक
जाने कितनी ज़ालिम हो जाती है जज़्बात की ताप
होश ठिकाने कर देती है अक्सर एहसासात है ताप
उनसे पूछो जो झुलसे हैं सावन की घनघोर घटा में
हम न जाने किस शिद्दत की होती बरसात की ताप
जाने कितनी ज़ालिम हो जाती है जज़्बात की ताप
होश ठिकाने कर देती है अक्सर एहसासात है ताप
उनसे पूछो जो झुलसे हैं सावन की घनघोर घटा में
हम न जाने किस शिद्दत की होती बरसात की ताप