मुक्तक
दूसरों के वास्ते जो खुद को उलझाते रहे,
भीड़ में तन्हा रहे पर दिल को बहलाते रहे
जब भी तनहाई मिली अपने ग़म पे रो लिये
वो महफिलों में तो सदा हंसते रहे, गाते रहे
दूसरों के वास्ते जो खुद को उलझाते रहे,
भीड़ में तन्हा रहे पर दिल को बहलाते रहे
जब भी तनहाई मिली अपने ग़म पे रो लिये
वो महफिलों में तो सदा हंसते रहे, गाते रहे