मुक्तक
“तख्तों ताज़ पे नाज़ तुम्हें वो ताज़ यही रह जाएगा,
बना रेत से महल तुम्हारा लहरों के संग बह जाएगा,
तुम बोलो मीठे बोल सदा ही एक दूजे का मान रखो
चढ़ा गुरुर जो सर पे ज़्यादा जीवन लेकर ढह जाएगा”
“तख्तों ताज़ पे नाज़ तुम्हें वो ताज़ यही रह जाएगा,
बना रेत से महल तुम्हारा लहरों के संग बह जाएगा,
तुम बोलो मीठे बोल सदा ही एक दूजे का मान रखो
चढ़ा गुरुर जो सर पे ज़्यादा जीवन लेकर ढह जाएगा”