मुक्तक
ख़ार नज़र आते हैं भावों के इस उपवन में,
मुरझाते फूलों को देख देख कर गुलशन में,
हृदय व्यथित होता अपनों के छल जाने से
मन मेरा जाना चाहे नादां से उस बचपन में,,
ख़ार नज़र आते हैं भावों के इस उपवन में,
मुरझाते फूलों को देख देख कर गुलशन में,
हृदय व्यथित होता अपनों के छल जाने से
मन मेरा जाना चाहे नादां से उस बचपन में,,