मुक्तक
ख़ुशनुमा- सा ख़्वाब सजाने नहीं दिए,
शास्त्री जी को जीवित आने नहीं दिए,
रच दी गहरी साज़िशे सपूत के ख़िलाफ़
जिंदगी का पूरा साथ निभाने नहीं दिए,,
ख़ुशनुमा- सा ख़्वाब सजाने नहीं दिए,
शास्त्री जी को जीवित आने नहीं दिए,
रच दी गहरी साज़िशे सपूत के ख़िलाफ़
जिंदगी का पूरा साथ निभाने नहीं दिए,,