मुक्तक
टूट जाए तार तो वो साज़ कोई साज़ नही,
जो ज़मीर बेच मिला ताज़ कोई ताज़ नहीं,
दिल छिपा ले मगर आँखों से छलक जाए
छिपा सकी न नज़र वो राज़ कोई राज़ नहीं
टूट जाए तार तो वो साज़ कोई साज़ नही,
जो ज़मीर बेच मिला ताज़ कोई ताज़ नहीं,
दिल छिपा ले मगर आँखों से छलक जाए
छिपा सकी न नज़र वो राज़ कोई राज़ नहीं