मुक्तक
—-ज़िंदगी क्या है ? ?
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कभी बँधती तनिक आशा,कभी बिलकुल निराशा है |
कभी है नीम सी कड़वी , कभी लगती बताशा है |
समझने की इसे कोशिश , बहुत मेरी रही अवधू ,
मगर समझा नहीं कुछ , ज़िंदगी ये क्या तमाशा है ??
——————अवधकिशोर ‘अवधू’
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मो० न०—-9918854285
————-9161508377
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