मुक्तक
—–: मुक्तक :—–
वादे करना स्वप्न दिखाना, हाय चुनावी रोग।
नेताओं की चिकनी चुपड़ी, समझ गये हैं लोग।
जाति धर्म का जाल बिछा कर, झोंक रहे हैं धूल-
जनता की पैसों से करते, सुविधाओं का भोग।
शब्दांत – बहन
भ्रात के गम को नहीं करती है जो सहन।
प्रेम से जो भी मिला हँसकर लिया पहन।
खुशनसीबी या कहूँ अनुदृष्टि ईश्वर की-
दे दिया भगवान ने मुझको भी इक बहन।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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