3 मुक्तक
आपकी बातों में मेरा ज़िक्र आया खूब है
खुशनुमा रातों में मेरा ज़िक्र आया खूब है
इश्क़ का दस्तूर था ये जीत हो या हार हो
खेल की घातों में मेरा ज़िक्र आया खूब है
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आपकी आहों में मेरा ज़िक्र आया खूब है
प्यार की राहों में मेरा ज़िक्र आया खूब है
खुशनुमा ये पल न बीतें यार तुम वादा करो
हुस्न की बाहों में मेरा ज़िक्र आया खूब है
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भटकते गाँवों में मेरा ज़िक्र आया खूब है
पेड़ की छाँवों में मेरा ज़िक्र आया खूब है
उम्रभर पाई न मंज़िल, क्या कहूँ ऐ यार मैं
यूँ थके पाँवों में मेरा ज़िक्र आया खूब है
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