मुक्तक
हटाकर शर्म का पर्दा समर में कूद जाना है
ऐ मेरे दोस्त तुझको भी सफल होकर दिखाना है
चलें गर आंधियां या फिर चले तूफान जोरों से
उम्मीदों का कोई दीपक तुम्हें हरपल जलाना है।
शक्ति त्रिपाठी देव
हटाकर शर्म का पर्दा समर में कूद जाना है
ऐ मेरे दोस्त तुझको भी सफल होकर दिखाना है
चलें गर आंधियां या फिर चले तूफान जोरों से
उम्मीदों का कोई दीपक तुम्हें हरपल जलाना है।
शक्ति त्रिपाठी देव