मुक्तक
उन्हें बारिश से बचाता रहा छाता बनकर
उन्हें दौलत भी लुटाता रहा खाता बनकर
वफा कहूं या इसे बेवफाई समझूं मैं
आज मेरे दिल को दुखाते हैं वो कांटा बनकर।
शक्ति त्रिपाठी देव
उन्हें बारिश से बचाता रहा छाता बनकर
उन्हें दौलत भी लुटाता रहा खाता बनकर
वफा कहूं या इसे बेवफाई समझूं मैं
आज मेरे दिल को दुखाते हैं वो कांटा बनकर।
शक्ति त्रिपाठी देव