मुक्तक
मानव का सम्मान
मान, इस धरा पर
गुम सा हो गया है
मनु , मनुबम खिलौना हो गया है
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खून के रिश्तों में खून दिखता नहीं है
आज सब कुछ फॉर्मल सा हो गया है
विदाई के समय आँखों में अश्रु दिखते नहीं हैं
आज बाय – बाय का चलन हो गया है
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छात्र सड़कों पर
अनुशासित खड़े हैं
छत्राओं के विद्यालयों से बाहर
आने का समय हो गया है
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मैथ की किताब में छुपाकर पढ़ते
फन और गेम की किताबें
पढ़ाई से नाता आज के बच्चों का
दूर – दूर तक खो गया है