मुक्तक
इन साजिशो के दौर में घुटते हुए से हम
रिश्तों की चोट खाकर टूटते हुए से हम
सब साथ थे,सब साथ हैं सब साथ रहेंगे
मन के इसी भ्रम में हैं लुटते हुए से हम
इन साजिशो के दौर में घुटते हुए से हम
रिश्तों की चोट खाकर टूटते हुए से हम
सब साथ थे,सब साथ हैं सब साथ रहेंगे
मन के इसी भ्रम में हैं लुटते हुए से हम