मुक्तक
हमने बहते हुए दरिया को रुकते हुए देखा है।
उसे समंदर की लहरों में घुटते हुए देखा है।।
ऐ नादान शक्स तेरी विसात ही क्या है यहाँ।
हमने सिकंदर को भी यहां झुकते हुए देखा है।।
@सर्वाधिकार सुरक्षित
मनीष कुमार सिंह ‘राजवंशी’
असिस्टेंट प्रोफेसर(बी0एड0 विभाग)
स0ब0पी0जी0 कॉलेज
बदलापुर, जौनपुर