मुक्तक
बरसों से है खडा पडोसी सीमा पर बस ताने गोली
देश के अंदर भी कुछ कुछ गद्दारों की देखी टोली।
घर जो मेरे आये खेलने स्वागत है पर नही खेलूगा
देश नही जो खुश मेरा तो फिर मैं कैसे खेलू होली।।
–अशोक छाबडा
बरसों से है खडा पडोसी सीमा पर बस ताने गोली
देश के अंदर भी कुछ कुछ गद्दारों की देखी टोली।
घर जो मेरे आये खेलने स्वागत है पर नही खेलूगा
देश नही जो खुश मेरा तो फिर मैं कैसे खेलू होली।।
–अशोक छाबडा