मुक्तक
बहुत दिनों पर मिलकर उसने यादों की परतें खोली हैं
नींद मेरी छीनी जिसने तुमरी आखें औ बोली हैं।
रही अधूरी चाहत जो थी पूरी कर लें आज अभी
गुलाल डालो तुम मुझपर मैं शरमाऊ आई होली है।।
–अशोक छाबडा
बहुत दिनों पर मिलकर उसने यादों की परतें खोली हैं
नींद मेरी छीनी जिसने तुमरी आखें औ बोली हैं।
रही अधूरी चाहत जो थी पूरी कर लें आज अभी
गुलाल डालो तुम मुझपर मैं शरमाऊ आई होली है।।
–अशोक छाबडा