मुक्तक
चल दिए तुम अभी राज बांकी हैं सब
दो दिलों की अभी बात बांकी है सब
फेर के तुम नजर जा रहीं क्यों सनम
जिन्दगी का अभी साथ बांकी है सब
यूँ निगाहें मिलाने से क्या फायदा
इस तरह आशिकी से है क्या फायदा
पास आके सनम तुम लगालो गले
रोज दूरी बढ़ाने से क्या फायदा
कुछ किया ही नहीं जिंदगी के लिए
मैं तो जीता रहा बस उसी के लिए
हमने’ यूँ ही गवां दी जवानी मगर
भाग्य को कोसते हर कमी के लिए