मुक्तक
अब कहीं भी चाय पे चर्चा नहीं होता
चर्चा तो होता है अगर्चा चाय नहीं होता
~ सिद्धार्थ
भूख से बड़ा कोई भी धर्म नहीं
रोटी से बड़ा कोई भगवान नहीं
~ सिद्धार्थ
कलम को अपने हथियार करने का सोचा था
तलवार वालों को बेकार करने का सोचा था
प्यार को जीने का सामान करने का सोचा था
पर.. ?
~ सिद्धार्थ