मुक्तक
जुबां लड़खड़ाए तो कोई नई … लखड़ाने दो
जो बात कहनी हो कह दो उसे फ़साने में
~ सिद्धार्थ
शब्द सीधे और सरल थे अर्थ मगर कुछ खास था
इक दहक जो भाव में बैठा था वही तो हमारा पाश था
~ सिद्धार्थ
समझ के फेरे में नहीं पड़ती मुहब्बत
होती है तो होती ही चली जाती है
~ सिद्धार्थ