मुक्तक
इन्सान खुदा
हमारी भी कुछ हैसियत है क्या
अच्छा! तो हमें क्यों नहीं पता ।
सदियाँ गुजर गयी समझने में
मालिक कौन? इन्सान या खुदा ।
-अजय प्रसाद
सहरा में हूँ नागफनी की तरह
दोस्ती में हूँ दुश्मनी की तरह।
हैसियत की तू हकीकत न पूछ
खुद घर में हूँ अलगनी की तरह।
-अजय प्रसाद
बहस और विवाद ज़रूरी है
हर्ष और विषाद ज़रूरी है।
ताकी खड़ा रहे ज़्म्हुरियत
जनतंत्र की बुनियाद ज़रूरी है ।
-अजय प्रसाद
जैसा हूँ वैसा ही मंजूर कर
वरना अपने आप से दूर कर ।
रहने दे मुझको तू मेरी तरह
तेरी तरहा यूँ मत मजबूर कर ।
-अजय प्रसाद
हम होंगे कामयाब एक दिन
ज़र्रे से आफताब एक दिन ।
जो आज कह रहे हैं नक्कारा
कहेंगे वही नायाब एक दिन ।
-अजय प्रसाद
मुझे वरगलाने की बात करता है
कहीं दिल लगाने की बात करता है ।
लोग यहाँ कितना किफायत करतें हैं
और ‘वो’ सब लूटाने की बात करता है ।
-अजय प्रसाद
शक़्ल में फूलों के खार मिलें
दुश्मनी निभाने को यार मिलें ।
ठोकरों ने है संभाला अक्सर
सबक मुझको हर बार मिलें ।
-अजय प्रसाद
एक दिन गुमनाम ही जहां से गुजर जाऊँगा
ज़िंदगी तेरी नज़रों से जब मैं उतर जाऊँगा ।
कुछ लोग आएंगे मेरी मैयत पे आसूँ बहाने
ओढ़ कफ़न अपने-वजूद से मुकर जाऊँगा ।
-अजय प्रसाद
वादे से मुकरना दुनिया ने सिखाया
आगे से गुजरना दुनिया ने सिखाया ।
कब,कँहा,किससे, कितना और कैसे
मुझे है उबरना दुनिया ने सिखाया ।
-अजय प्रसाद
लिए कांधे पर खुद की लाश ज़िंदा हूँ
ज़िंदगी,मैं तेरी रुसवाई पे शर्मिन्दा हूँ ।
जो कभी किसी का एक जैसा न रहा
उसी वक्त के हाथों पीटा गया कारिंदा हूँ ।
-अजय प्रसाद
अपनी शर्तों पे जिया है और कुछ नहीं
मुझ पे रहमते खुदा है और कुछ नहीं ।
जिंदगी भर बस मुसलसल जद्दोजहद
आंधियों में एक दिया है और कुछ नहीं ।
-अजय प्रसाद
दौलत,शोहरत,तोहफे,तमगे न पुरस्कार चाहिए
बस आप के दिलों में खुद के लिए प्यार चाहिए ।
जो मिले,जब मिले और जैसे जिस हाल में मिले
नज़रों में आदर, अपनापन और सत्कार चाहिए ।
-अजय प्रसाद
उसकी नफरतों से निखर गया
इश्क़ में मैं इस कदर गया ।
मेरी बद हवासी का आलम न पूछ
तवाही की तरफ़ ,खुश हो कर गया ।
-अजय प्रसाद
अपने हिस्से की हम दुनिया दारी रखें
कुछ तो अपने अंदर भी इमानदारी रखें ।
कोसना सरकार को हमेशा ठिक नहीं
जितनी हो सके उतनी ज़िम्मेदारी रखें ।
अगर करतें हैं उम्मीद दूसरों से वफ़ा की
तो उनके लिए भी दिल में वफादारी रखें ।
-अजय प्रसाद
शहर दर शहर है अन्दोलनों का कहर
किसे फ़िक्र,अवाम है परेशां किस कदर ।
तोड़फोड़,आगजनी और हिंसक प्रदर्शन
कौन फैला रहा है ये अशान्ति का ज़हर ।
-अजय प्रसाद
किस कदर आज है मजबूर आदमी
अपनों से भी हो गया है दूर आदमी ।
किसकी खता थी कौन भुगत रहा है
सोंचता है बैठ कर बेकसूर आदमी ।
-अजय प्रसाद
संयम कम और आकांक्षाएँ अपरीमित
लालसाएं असंख्य और साधन सीमित ।
अनियंत्रित जीवन की अनंत प्रतिस्पर्धा
अनवरत संघर्ष है दिनचर्या अनियमित ।
-अजय प्रसाद
वादे से मुकरना दुनिया ने सिखाया
आगे से गुजरना दुनिया ने सिखाया ।
कब,कँहा,किससे, कितना और कैसे
मुझे है उबरना दुनिया ने सिखाया ।
-अजय प्रसाद
तोहमत एक दूजे पे लगाते रहें हैं
धंधा सियासत का चलाते रहें हैं ।
फ़िक्र है अवाम की उन्हें बेहद
खोखले आश्वासन दिलाते रहे हैं
कहीं पत्थर दिल न कोई समझे
घड़ियाली आसूँ वो बहाते रहें हैं
-अजय प्रसाद
होश में आए हैं सब कुछ लूटा कर
पछताए बहुत हम सर पे बिठा कर ।
हमे क्या पता था इस कदर भी होगा
जश्न वो मनाएंगे हमको मिटा कर ।
रास्ते पे थे बैठे हम लगा कर उम्मीदें
बढ़ गए आगे वो ठोकर लगा कर ।
-अजय प्रसाद
अन्धों की बस्ती में आईने बेच रहा हूँ
धूप में बैठकर मैं छाँव सेंक रहा हूँ ।
हाँ ,है तो बेहद मुशिकल काम दोस्तों
पानी में चंद लकीरें मैं खैंच रहा हूँ ।
-अजय प्रसाद