मुक्तक
1.
क्या किजे जब इंसान में इंसान मर गया
अंदर बहते नदी में विष जैसा कुछ घुल गया !
~ सिद्धार्थ
2.
कोई बिक रहा है कोई खरीद रहा है, हाय बिकना बुरा थोड़ न है
सिक्कों को गर उछाला जाय, बेश्या के पैरों का थिरकना बुरा थोड़ न है…?
~ सिद्धार्थ
3.
बेशर्मों की जमात को राजनीति कहते हैं
शर्म वालों को जो अक्सर मूर्खों में गिनते हैं
~ सिद्धार्थ