मुक्तक
रात के सिरहाने में तेरा नाम रख के मैं सो जाती हूं
चांद छत से झांकता है तो तेरे एहसास का चाय पिलाती हूं !
~ सिद्धार्थ
गुलाबों ने भी बड़ा जुल्म किया है आशिकों पे
कभी सीने से लग के कभी करीने से चुभ के !
???
~ सिद्धार्थ
शहर भर से रार मोल ले लेती मैं
एक बार जो तू कहता ये तफ़री तेरे लिए है…?
दिल का धड़कना तेरे लिए है
सांसों का महकना तेरे लिए है
जो भी है मेरा सब बस तेरे लिए है…
~ सिद्धार्थ