मुक्तक
लब सज़ायाफ़्ता है आंखें अक्सर बोल पड़ती हैं
तेरी मर्जी हो के न हो दर्द पे आंखे रो पड़ती हैं
~ सिद्धार्थ
मैं उदासी से खुला भला क्यूं लूं…
तुम मुस्कान बन
ठहरते होठों पे तो बात अलग थी…
तेरे आंखों को भला आइना क्यूं करूं मस्वविर
मेरीदीद को तरसती आंखे तेरी तो अलग बात थी
~ सिद्धार्थ