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23 Apr 2020 · 1 min read

मुक्तक

बचपन

सौम्य आनन निरख मंजुल रीझ शिशु पुलकित हुआ।
मेलकर आँगुल्य निज मुख बालमन शंकित हुआ।
कौन मुझसा रूप धरकर छल रहा अविरल मुझे-
गुन रहा उर भाव चंचल मौन हिय मुखरित हुआ।

पकड़ता लख हस्त दूजा खेलने की प्यास है।
कर रहा मनुहार छवि से ये अजब अहसास है।
मोद मधुरिम गुदगुदा अंतस करे अठखेलियाँ-
एक मादक सी छुअन से मिल रहा विश्वास है।

स्वर्ग से रस-गंध लेकर ईश ने इसको रचा।
साक्ष्य देती ये ज़मीं उतरे स्वयंभू तन सजा।
कर रहा हर छंद चित्रित लाल के शृंगार को-
शुभ्र मणिका निरख सृष्टि ही गयी अब तो लजा।

डॉ रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 252 Views
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Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
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