मुक्तक
तुम क्या मुझको मुझ में मिलोगे?
मैं क्या तुमको तुम में कभी मिलूंगी?
ये मिलना एक दूसरे को एक दूसरे के अंतर में
क्या इसको सम्भव मैं या तुम करोगे?
~ सिद्धार्थ
छलक रहे हो तुम जीवन पनघट पे मगर तुम्हें मलाल नहीं
बूंद बूंद कर घट जाओगे क्या इसका भी ख्याल नहीं
~ सिद्धार्थ