मुक्तक
कितने ख्वाब डूबे हैं पनिली आंखों के घाट पे
दिल आश लगाए बैठा रहा यार के दहलीज के बाट पे
वो आए तो पूछेंगे हम खामी क्या निकली मेरे प्यार में
क्यूं तनहाई मिली मुझको प्रीतम प्रीत के निर्मल घाट पे
~ सिद्धार्थ
कितने ख्वाब डूबे हैं पनिली आंखों के घाट पे
दिल आश लगाए बैठा रहा यार के दहलीज के बाट पे
वो आए तो पूछेंगे हम खामी क्या निकली मेरे प्यार में
क्यूं तनहाई मिली मुझको प्रीतम प्रीत के निर्मल घाट पे
~ सिद्धार्थ