मुक्तक
ये जो तुम देख कर भी नहीं देखते
आदत है, या यूं ही तुम नहीं देखते.?
स्याह रातों में चांद झांकता हो झरोखे से
उठ के तुम हाल मेरे जानिब से क्यूं नहीं पूछते
मेरी परेशानियों का कोई हल क्यूं नहीं
क्यूं नहीं कोई हल तुम रात से ही पूछते
~ सिद्धार्थ
ये जो तुम देख कर भी नहीं देखते
आदत है, या यूं ही तुम नहीं देखते.?
स्याह रातों में चांद झांकता हो झरोखे से
उठ के तुम हाल मेरे जानिब से क्यूं नहीं पूछते
मेरी परेशानियों का कोई हल क्यूं नहीं
क्यूं नहीं कोई हल तुम रात से ही पूछते
~ सिद्धार्थ