मुक्तक
अपने सपने मार दो
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सपने और अपने मारने के लिए नहीं होते
दिल को खंजर आंखों को तेजाब से कभी नहीं धोते…
~ सिद्धार्थ
2.
अजी हमने तो महफ़िल से उठते उठते भी
झुकी पलकों से भी आशुं गिरना देख लिया
3.
हवा को कोन देखे, दिल रक्स करता रहता है
दिलबर की याद में कुछ अक्स खींचा करता है
4.
अजी जाओ भी …
हम उसकी गली में भटके हैं उसके ही नाम में अटके हैं.?
उस प्रीतम से मिलने की चाह में हम उम्मीदों से लटके हैं…
~ सिद्धार्थ