मुक्तक:
आंधियों में उड़ गया था, आज वापस आ गाया हूं.
साख से बिछडा हुआ था, साख वापस पा गया हूँ.
बहुत दिन से था परेशां, पर नहीं भटका कहीं भी,
लाचार था हारा नहीं, जुल्मों पे यूँ अब छा गया हूँ.
@ डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ (कोटा)
अधिवक्ता/साहित्यकार
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