मुक्तक
शामों-सहर तेरा क्यों ख्वाब देखता हूँ?
दर्द का ख्यालों में आदाब देखता हूँ!
अजनबी सी बन गयी हैं मंजिलें लेकिन,
रंग ख्वाहिशों का बेहिसाब देखता हूँ!
#महादेव_की_कविताऐं’ (23)
शामों-सहर तेरा क्यों ख्वाब देखता हूँ?
दर्द का ख्यालों में आदाब देखता हूँ!
अजनबी सी बन गयी हैं मंजिलें लेकिन,
रंग ख्वाहिशों का बेहिसाब देखता हूँ!
#महादेव_की_कविताऐं’ (23)