मुक्तक
छलका छलका एक समन्दर आँखों में,
टूटे ख्वाबों का हर मंज़र आँखों में।
बेगानेपन से घायल दिल को करता,
एक नुकीला चुभता खंज़र आँखों में।
दीपशिखा सागर-
छलका छलका एक समन्दर आँखों में,
टूटे ख्वाबों का हर मंज़र आँखों में।
बेगानेपन से घायल दिल को करता,
एक नुकीला चुभता खंज़र आँखों में।
दीपशिखा सागर-