मुक्तक
तपकर दर्द की भट्टी में ताक़तवर बने हैं हम ,
सीना चीर दें ज़ुल्मों का वो खंजर बने हैं हम,
मुझे फिर तोड़ने कि किसमें है हिम्मत जरा देखें
रहे ना काँच से कमजोर अब पत्थर बने है हम….
तपकर दर्द की भट्टी में ताक़तवर बने हैं हम ,
सीना चीर दें ज़ुल्मों का वो खंजर बने हैं हम,
मुझे फिर तोड़ने कि किसमें है हिम्मत जरा देखें
रहे ना काँच से कमजोर अब पत्थर बने है हम….