मुक्तक
कब किसको मेरे पाँव के छाले नज़र आते,
निज स्वार्थ में अंधे नज़रवाले नज़र आते,
संवेदनाओं ने तो ओढी धूल की चादर
मुझे आदमी के सोच पर जाले नजर आते
कब किसको मेरे पाँव के छाले नज़र आते,
निज स्वार्थ में अंधे नज़रवाले नज़र आते,
संवेदनाओं ने तो ओढी धूल की चादर
मुझे आदमी के सोच पर जाले नजर आते