मुक्तक
न जाने क्यूँ वो होके उम्मीद- वार बैठा है
मेरे होने के बदले मेरा ‘पर’ मांग बैठा है !
…सिद्धार्थ
दिल में एक आरजू, एक उम्मीद, एक हमनवाई है
विसाल-ए-यार मगर लकीरों में नहीं लिखवाई है !
…सिद्धार्थ
न जाने क्यूँ वो होके उम्मीद- वार बैठा है
मेरे होने के बदले मेरा ‘पर’ मांग बैठा है !
…सिद्धार्थ
दिल में एक आरजू, एक उम्मीद, एक हमनवाई है
विसाल-ए-यार मगर लकीरों में नहीं लिखवाई है !
…सिद्धार्थ