मुक्तक
फूल की खुशबू, चिल्का की हंसी ले के जो हम जिये
आप को सदियां लगेंगी हमें भूल जाने में
जिन्हें न हंसने का मालूम हो सलीका, न हंसाने का
ऎसे लोग भी इस महफिल में हैं, मुझे आजमाने में
दुख का कारखाना क्यूं न दिखे इस जहां की सारी बस्ती
लोग – बाग लगे हैं बस एक दूसरे को घीच कर गिराने में ।
… सिद्धार्थ