मुक्तक
१.
रात के हथेली पे रौशनी नही खेला करती
दिन के सीने पे महताब
रात के सीने पे आफ़ताब नही मचला करती
…सिद्धार्थ
२.
जाओ तुम सब से कह दो, हम चाँद छूने भी इक दिन जायेंगे
आज मगर भूख और रोटी की बातों पे ही हम उनको गरियायेंगे !
…सिद्धार्थ
१.
रात के हथेली पे रौशनी नही खेला करती
दिन के सीने पे महताब
रात के सीने पे आफ़ताब नही मचला करती
…सिद्धार्थ
२.
जाओ तुम सब से कह दो, हम चाँद छूने भी इक दिन जायेंगे
आज मगर भूख और रोटी की बातों पे ही हम उनको गरियायेंगे !
…सिद्धार्थ